Namaz Mein Salam Jawab Zaban Se Nahi Dena Chahiye
नमाज़ में सलाम का जवाब (ज़बान से) नहीं देना चाहिए।
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि. से रिवायत है,
उन्होंने फरमाया कि
मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म ने किसी काम के लिए भेजा,
चूनांचे मैं गया
और वह काम करके नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म की खिदमत में हाज़िर हुआ,
मैंने आपको सलाम किया, मगर आपने जवाब न दिया,
जिससे मेरा दिल इतना रंजीदा हुआ कि अल्लाह ही खूब जनता है,
मैंने अपने दिल में कहा कि
शायद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म मुझ से नाराज़ हैं कि मैं देर से लौटा हूँ।
चूनांचे मैंने फिर सलाम किया तो अपने जवाब न दिया, अब तो मेरे दिल में पहले से ज़्यादा गम हुआ।
मैंने फिर सलाम किया तो अपने सलाम का जवाब दे कर फरमाया, चूंकि मैं नमाज़ पढ़ रहा था,
इसलिए मैं तुझे सलाम का जवाब न दे सका।
उस वक़्त आप सवारी पर थे, जिसका रुख क़िब्ले कि तरफ न था। (इसलिए मैं तमीज न कर सका कि आप नमाज़ में हैं या नहीं)
फायदे :
मुस्लिम में इतनी वजाहत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म ने सलाम का जवाब हाथ के इशारे से दिया था, जिसे हज़रात रज़ि. न समझ सके, इसलिए वह परेशान और फिक्रमन्द हो गये।
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अल्लाह तआला रब्बुल अज़ीम हम सब मुसलमान भाइयों को कहने, सुनने और सिर्फ पढ़ने से ज्यादा अमल करने की तौफीक अता फ़रमाये और हमारे रसूल नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बताई हुई सुन्नतों और उनके बताये हुए रास्ते पर हम सबको चलने की तौफीक अता फ़रमाये (आमीन)।
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