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Gana gane ya sunne se bhi koi musalman kafir ho jata hai
गाना गाने या सुन्ने से भी क्या कोई मुसलमान काफिर हो जाता है
बहुत सारे गानो मे कुफ्रिया अश्आर होते हे हम यहा सिर्फ कुछ बता रहे है जो हमारी मजबुरी है बताना वरना इन कुफिरिया कलमात को लिखना नही चाहता।
अल्लाह हमे गाने बाजो से महफुज रखे। आमीन
जवाब: जी हां! आप कुछ कुफ्रीया गानों के अशआर देखिये…
- सीप का मोती या आसमान की धूल तू है कुदरत का करिश्मा या खुदा की भूल “!
- इस शेअर मे अल्लाह को भूलने वाला माना गया जो कुफ्र है ।
- अल्लाह तआला भूलने से पाक है चूनान्चे ,सूरए ताहा ,आयत ,52 मे फरमाया …
तर्जमा कंजुल ईमान : मेरा रब ना बहेके ना भुले - (2) हाये तूझे चाहे गे अपना खुदा बनायेंगे
- इस में अल्लाह के सिवा किसी और को खुदा बनाने का इरादा किया है जो सरीह कुफ्र है।
- हसीनो को आते है क्या क्या बहाने खुदा भी ना जाने तो ,हम कैसे जाने।
माशाअल्लाह इस शेअर के दूसरे मिसरे में कहा गया ,खुदा भी ना जाने, ये बात सरीह कुफ्र है ।
हज़रात इस तरह के हजारो गानों के अशआर कुफ्रीया है लेहाजा भलायी इसी में है के गाने सुनना और गाना छोड़ दे ,वरना कभी कोई कुफ्रीया गाना मुँह से निकल जाये या दिलचस्पी से सुन ले तो ईमान से हाथ धो बैठेंगे और ख़बर भी ना होंगी अगर किसी ने कुफ्रीया गाने गाये या सुने तो ऊन से तौबा करना ज़रूरी है ।
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अल्लाह तआला रब्बुल अज़ीम हम सब मुसलमान भाइयों को कहने, सुनने और सिर्फ पढ़ने से ज्यादा अमल करने की तौफीक अता फ़रमाये और हमारे रसूल नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बताई हुई सुन्नतों और उनके बताये हुए रास्ते पर हम सबको चलने की तौफीक अता फ़रमाये (आमीन)।
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