Sohbat karne ka islami tariqa
हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया
“तुम में से जो कोई अपनी बीवी के पास जाये तो पर्दा
कर ले और गधे की तरह न शुरू हो जाये”
(इब्ने माजा,जिल्द 1,सफ़ा 538, हदीस न० 1990,बाब न० 616)
उम्मुलमोमेनिन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ि अलहु अन्हा से रिवायत हे की
हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया
“जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है,
अल्लाह तआला उसके लिए 1 नेकी लिख देता है,
जब मर्द प्यार से औरत के गले में हाथ डालता है
उसके हक़ में 10 नेकिया लिखी जाती है,
और जब औरत से सोहबत करता है तो दुनिया और जो
कुछ उसमे है उन सबसे बेहतर हो जाता है”
(गुणयतुत्तलिबीं सफ़ा 113)
सोहबत से पहले खुद बेचैन न हो जाये अपने आप पर पूरा इत्मीनान रखे जल्दबाजी न करे पहले
बीवी से प्यार मुहब्बत की बातचीत करे फिर बोस व किनार (किस्स) वगैरा से उसको रज़ि करे और इसी
दुरान दिल ही दिल में ये दुआ पढ़े:
“बिस्मिल्लाहिल अलियूल अज़ीमे अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर”
तर्जुमा:
“अल्लाह के नाम से जो बुजुर्ग व बरतर अजमतवाला है. अल्लाह बहुत बड़ा है, अल्लाह बहुत बड़ा है.
इसके बाद जब मर्द,औरत, सोहबत का इरादा कर ले तो कपड़े जिस्म से अलग करने से पहले एक मर्तबा
“सौराह इखलास” पढ़े
“कुल हुवल्लाहो अहद. अल्लाहुस्समद. लम-या-लिद.
आलम यूलद आलम या कुल्लहु कुफूवान अहद.” सौराह इखलास पढ़ने के बाद ये दुआ पढ़े
“बिस्मिल्लाही अल्लाहुम्मा जैनिब नाश शैतान व जानने बिश शैतान माँ रजक तना,”
तर्जुमा:
“अल्लाह के नाम से. ऐ अल्लाह दूर कर हमसे शैतान मरदूद को और दूर कर शैतान
मरदूद को उस औलाद से जो तू हमे अता करेगा”
(बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफ़ा 473)
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि अलहु अन्हु से रिवायत है
के हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया
“जो शख्स इस दुआ को सोहबत के वक़्त पढ़ेगा (दुआ वही जो ऊपर लिखी है)
तो अल्लाह उस पढ़ने वाले को अगर औलाद अता फरमाए
तो उस औलाद को शैतान कभी भी नुकसान न पहुंचा सकेगा”
(बुखारी शरीफ जिल्द 3,सफ़ा 85, तिर्मिज़ी शरीफ,जिल्द 1,सफ़ा 557)
हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी
व हज़रत मुहक्किके इस्लाम शैख़ अब्दुल हक़
मोहोड़दास दहलवी और आला हज़रात इमाम अहमद
राजा खान इरशाद फरमाते हैं
“अगर कोई शख्स सोहबत के वक़्त दुआ न पढ़े तो
उस शख्स की शर्मगाह से शैतान लिपट जाता है और
उस मर्द के साथ शैतान भी उस औरत से सोहबत करने लगता है.
और जो औलाद पैदा होती है वह न फरमान,बुरी आदतवाली,बेगैरत,बाद-दीन होती है.
शैतान की इस दखल अंदाजी की वजह से औलाद में तबहकारी आ जाती है”
(गुणयतुत्तलिबीं सफ़ा 116, फतवा-ए-रजविया, जिल्द 9,सफ़ा 48)
इंज़ाल (मनी निकलते वक़्त) की दुआ:
जिस वक़्त इंज़ाल हो यानी मर्द की मानी उसके
उजू-ए-तनसुल से निकल कर औरत की शर्मगाह में
दाखिल होने लगे उस वक़्त दिल ही दिल मे ये दुआ पढ़े:
“अल्लाहुम्मा-ला-तजाअल लिश शैतान फि-म-राजकतनी नसी-बा
तर्जुमा:
“ए अल्लाह शैतान के लिए हिस्सा न बना उसमे जो (औलाद) तू हमे अता करे”
(हिलने हसीन सफ़ा 165, फतवा-ए-रजविया जिल्द 9,सफ़ा 161)
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अल्लाह तआला रब्बुल अज़ीम हम सब मुसलमान भाइयों को कहने, सुनने और सिर्फ पढ़ने से ज्यादा अमल करने की तौफीक अता फ़रमाये और हमारे रसूल नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बताई हुई सुन्नतों और उनके बताये हुए रास्ते पर हम सबको चलने की तौफीक अता फ़रमाये (आमीन)।
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