WAH HALAAT JINME ROZA NAHI jata
वह हालात जिनमे रोज़ा नहीं जाता
सेहरी खाना और उसमे देर करना मुस्तहब है और सवाब का सबब.
मगर इतनी देर लगाना की सुबह होने का शक हो जाये मकरूह है.
आलमगीरी,सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर इफ्तार में जल्दी करना मुस्तहब है.
मगर इफ्तार उस वक़्त इफ्तार उस वक़्त करे की जब सूरज डूबने का पूरा यकीन हो.
जब तक पूरा यकीन न हो इफ्तार न करे अगर मुअज़्ज़िन ने अज़ान कह दी हो या किसी और तरीके पर इफ्तार का ऐलान कर दिया जाये
और बदल छाए हो तो इफ्तार में जल्दी न करनी चाहिए. ताज़ा खजूर जो सुखी नहीं है
और यह न हो तो सूखे छुहारे करना पानी से इफ्तार करना सुन्नत है
ज़ेवर मक्खी हलक में चली गयी रोज़ा न गया और इरादे से निगाली तो रोज़ा जाता रहा.
कस्दन मुँह भर उलटी की और रोज़दार होना याद है तो रोज़ा जाता रहा. चाहे उसमे कुछ मुँह ही से हलक में वापस चली जाये या न जाये.
और मुँह भर से काम की तो रोज़ा न गया.
उलटी चाहे इरादे से हो या बिला इख़्तियार उसमे बलगम आया तो रोज़ा न टूटा अगरचे मुँह भर हो ज़ेवर बिला इख़्तियार उलटी हो गयी
और मुँह भर है और उसने लौटा ली अगरचे उसमे से सिर्फ चने के बराबर हलक से उतरी तो रोज़ा जाता रहा, वरना नहीं.
और मुँह भर न हो तो रोज़ा न गया अगरचे हलक में लौट गयी या उसने खुद लौटाई भूले से खाना खा रही थी
याद आते ही फ़ौरन लुक्मा फेंक दिया या सुबह सादिक़ से पहले खा रही थी
और सुबह होते ही उगल दिया तो रोज़ा न गया और निगल लिया तो दोनों सुरतो में जाता रहा और इन दोनों सुरतो में उस पर कफ़्फ़ारा वाज़िब हो गया.
तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हलक से उतार गयी
तो रोज़ा न गया मगर जबकि उसका मज़ा हलक में महसूस हो तो रोज़ा जाता रहा.
बात करने में थूक से होंठ भीग गए और उसे पी गयी या मुँह से लार तपकी मगर तर टूटा न था की उसे चढ़ाकर पी गयी.
या नक् में रिन्थ आ गयी बल्कि नाक से बहार हो गयी मगर अलग न हुई थी की उसे चढ़ा कर पी गयी.
या खाकर मुँह में आई और खा गयी अगरचे कितनी ही हो रोज़ा न जायेगा.
लेकिन यह चूँकि नफरत लाने वाली चीज़े है और उनसे दुसरो को भी घिन आती है.
इसलिए उनसे एहतियात चाहिए. कोई चीज़ खरीदी और उसका चकना ज़रूरी है की न चखेगी तो नुकसान होगा तो चखने में हर्ज़ नहीं वरना मकरूह है.
चखने से मुराद यह है की जबान पर रख कर मज़ा मालूम कर ले और उसे थूक दे.
उसमे से कुछ हलक में न जाने पाए. रोज़ादार को बिला उजरा किसी चीज़ का चखना या चबाना मकरूह है.
चखने के लिए उजरा यह है की जैसे औरत का शौहर बाद मिज़ाज़ है.
हिन्दी में नमक कामो बेश होगा तो उसकी नाराज़गी का सबब होगा तो चखने में हर्ज़ नहीं.
चबाने के लिए यह उजरा है की इतना छोटा बच्चा की रोटी नहीं खा सकता और कोई नरम ग़िज़ा नहीं जो उसे खिलाई जाये.
न हेज़ व निफास्वली कोई औरत है न कोई और रोज़दार ऐसा जो उसे चबा कर देदे तो बच्चे को खिलने के लिए रोटी वगैरा चबाना मकरूह नहीं
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